महानरेगा अब पाठ्यक्रम में भी
दुनिया में सबसे बड़ी रोज़गार योजनाओं में अपनी जगह बना चुकी भारत की 'महा-नरेगा' योजना ने अब एक विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में भी अपना स्थान बना लिया है.
राजस्थान में कोटा स्थित वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय ने नरेगा के लिए 'महात्मा गाँधी मेट प्रमाणपत्र' कोर्स शुरू किया है.
इसके तहत ऐसे सहयोगी बनाए जाएंगे जो नरेगा के तहत चलने वाली विभिन्न योजनाओं की निगरानी करने लायक़ बनेंगे, रेजिस्टर में काम करने वाले का ब्योरा लिखने वाले होंगे, दूसरे शब्दों में सहयोगी होंगे.
मेट को साथी संगी के अर्थ में देखा जा सकता है.
अपनी तरह का ये पहला कोर्स है. इसमें तीन प्रशन-पत्र होंगे और इसके लिए हमने पूरी तैयारी शुरू कर ली है. हम इसमें दाख़िल विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय से दूर ले जाकर मौक़े पर भी प्रशिक्षण देंगे
कुलपति नरेश दाधीच, वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय
कोई तीन साल पहले इसी विश्वविद्यालय ने 'गांधीगिरी' पर एक कोर्से शुरू किया था.
विश्वविद्यालय के कुलपति नरेश दाधीच ने बीबीसी से कहा "ये रोज़गार-मूलक कोर्स होगा. इस साल जुलाई से पढ़ाई शुरू की जाएगी."
उन्होंने कहा, "ये कोर्स नरेगा में मेट की नौकरी के पात्र तैयार करेगा, इसके लिए राज्य सरकार ने हमसे आग्रह किया था."
साथ में उन्होंने मेट के बारे में बताते हुए कहा कि "नरेगा के क्रियान्वयन में मेट की ज़रूरत पड़ती है जो योजना के काम में लगे लोगों से कार्य संपादित करवाता है और निगरानी रखता है."
अनूठा कोर्स
कुलपति कहते है, "अपनी तरह का ये पहला कोर्स है. इसमें तीन प्रश्न-पत्र होंगे और इसके लिए हमने पूरी तैयारी शुरू कर ली है. हम इसमें दाख़िल विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय से दूर ले जाकर मौक़े पर भी प्रशिक्षण देंगे."
उन्होंने कहा, "नरेगा का ये कोर्से छह महीने पर आधारित होगा. इसमें विद्यार्थियों में नरेगा कार्यक्रम के बारे में चेतना भी पैदा की जाएगी."
इससे पहले जब मुन्ना भाई के ज़रिए गांधीगिरी की बयार आई तो इसी विश्वविद्यालय ने गांधीगिरी पर एक सर्टिफ़िकेट कोर्स शुरू किया था. इसमें अब तक कोई डेढ़ सौ लोग शिक्षा प्राप्त कर चुके है.
विश्वविद्यालय ने गांधीगिरी के कोर्स में और इज़ाफ़ा किया और इसे और अधिक समृद्ध कर दिया है.
वैसे तो विश्वविद्यालय इस कोर्स में प्रवेश के लिए थोड़ी ऊँची शिक्षा मांगते है. मगर नरेगा के कोर्स में दसवीं पास ही दरकार है.
भारत में नरेगा एक ऐसी योजना है जो ग्रामीण भारत में मांगते ही ज़रूरतमंद को काम देने की ज़मानत देती है. मगर इसमें जब पैसा बरसा तो इसके सफल क्रियान्वयन में अड़चनें आने लगीं.
सामाजिक कार्यकर्ता इसमें भ्रष्टाचार की शिकायतें करने लगे. शायद विश्वविद्यालय अपने पाठ्यक्रम से ऐसे लोग तैयार करे जो नरेगा को अमली जामा पहनाने में ''पराए पैसे को पाप'' समझें.
राजस्थान में ही गत वर्ष नरेगा में कोई आठ हज़ार करोड़ रूपए आए थे
Source http://www.bbc.co.uk
नारायण बारेठ
बीबीसी संवाददाता, जयपुर
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