छिने अधिकार लेने में ही रह गए सरपंच!
अजमेर. पंचायतीराज संस्थाओं में 5 साल के लिए निर्वाचित हुए सरपंचों के कार्यकाल का एक साल बीत गया और अधिकार की लड़ाई में विकास के नाम पर वे कुछ नहीं कर पाए। पूरे साल सरपंच टेंडरों और छीने गए अधिकारों को वापस लेने में ही उलझकर रह गए। गांवों की सरकारें गंदे पानी की निकासी के लिए नालियां बनाने में भी नाकामयाब रहीं।
महानरेगा में लाखों की लागत से आईटी सेंटर स्वीकृ किए गए लेकिन एक का भी निर्माण पूरा नहीं हो पाया। गांवों की सरकारें पहले अपने स्तर पर ही टेंडर कर गांव का चहुंमुखी विकास कराती थीं। टेंडर करने का यह सिलसिला लंबे समय से ही चला आ रहा था। ग्राम पंचायत की योजनाओं के साथ-साथ महानरेगा के टेंडर भी सरपंच व ग्रामसेवक ही किया करते थे। ग्राम स्तर पर टेंडर करने से गांव के ठेकेदारों को भी रोजगार मिलता था। इधर, सरकार ने महानरेगा में भ्रष्टाचार की आड़ लेते हुए ग्राम पंचायतों से महानरेगा के टेंडर तो ग्राम पंचायतों से छीने ही, पंचायत की योजनाओं के लिए किए जाने वाले टेंडर भी छीनकर पंचायत समिति को दे दिए।
पंचायत समिति ने लंबी मशक्कत के बाद अपने स्तर पर ही टेंडर किए तो अलग-अलग सामग्री के अलग-अलग ठेकेदार हो जाने के कारण सामग्री ही समय पर सप्लाई नहीं कर पाए। आईटी सेंटर पर ठेकेदारों द्वारा घटिया सामग्री सप्लाई करने की भी सरपंचों ने शिकायतें ही लेकिन प्रशासन ने जांच करवाना मुनासिब ही नहीं समझा। सरपंचों ने अपने अधिकारी छीनने का जमकर विरोध किया, नतीजतन सरकार को झुकना पड़ा और 2 अक्टूबर को ग्राम पंचायतों को ही टेंडर करने के लिए स्वतंत्र कर दिया। लेकिन राज्य सरकार की विरोधाभासी व्यवस्था के कारण ग्राम पंचायतों द्वारा टेंडर करने के बाद भी वे अमल में नहीं आ पाए।
इसके पीछे वजह यह रही कि पंचायत समिति स्तर पर किए गए टेंडरों को निरस्त ही नहीं किया गया और ना ही ठेकेदारों को उनकी जमा राशि ही लौटाई। ऐसे में वर्तमान में दो-दो स्तर पर टेंडर प्रक्रिया हो गई और इन दोनों में से कम दर वाली फर्म से सामग्री खरीद नहीं करने पर वसूली का डर सताने लगा। इसकी वजह से सरपंचों ने सामग्री की खरीद ही नहीं कर पाई। टीएफसी व एसएफसी समेत अन्य योजनाओं में ग्राम पंचायत अपने स्तर पर काम करवाती है लेकिन पहले टेंडर का रोड़ा और बाद में टीएफसी की किश्त का उपयोग केवल हैंडपंप व बोरिंग करवाने में ही करने के लिए पाबंद करने के कारण वे अन्य कोई काम नहीं करवा पाए।
इसमें भी पीसांगन पंचायत समिति समेत कुछ अन्य स्थानों को डार्कजोन घोषित कर दिया गया। महानरेगा में भी केवल आईटी सेंटर के ही पक्के काम स्वीकृत किए गए। जिले में पिछले साल मार्च माह में 256 ग्राम पंचायतों में दस-दस लाख की लागत से आईटी सेंटर के काम स्वीकृत किए गए लेकिन दस माह बीत जाने के बावजूद टेंडरों के घालमेल में वह आधे-अधूरे ही पड़े हैं। अब ग्राम पंचायतों द्वारा किए गए टेंडर कब से अमल में आ पाएंगे, यह भी तय नहीं है। इन टेंडरों के लिए सरकार ने सरपंच व ग्रामसेवक पर विश्वास ना कर पूरी कमेटी बनाते हुए जेईएन व एकाउंटेंट को भी शामिल किया गया।
महानरेगा में गड़बड़ी के चलते मालातों की बेर के सरपंच गणपतसिंह व बोराड़ा के सरपंच रामसिंह चौधरी को जेल की हवा खानी पड़ी, वहीं जवाजा पंचायत समितियों में सरपंचों के नाम रिकवरी निकाली गई। गड़बड़ी के कारण ही महानरेगा में सरपंचों से मेट लगाने और श्रमिकों के नाम लिखने का अधिकार भी ग्राम पंचायतों से छीनकर पंचायत समिति स्तर पर दे दिया गया। यही वजह रही कि सरपंच अपने विश्वासपात्र को मेट तक नहीं बना पाए और विरोधी उन पर हावी रहे।
सरपंचों का एक साल यूं ही बरबाद हो गया। क्षेत्र का विकास नहीं कर पाए। पूरे साल टेंडरों को लेकर ही माथापच्ची करते रहे। अभी भी पंचायतों ने टेंडर कर लिए लेकिन वह अमल में नहीं आ पाए। पुराने टेंडर भी निरस्त नहीं हो पाए। - भूपेंद्र सिंह राठौड़, जिलाध्यक्ष सरपंच संघ
पंचायत क्षेत्र में कोई विकास नहीं करवा पाए। यहां तक की नालियों का निर्माण तक नहीं करा पाए। विकास नहीं होने से जनता सरपंचों को कोस रही है। आईटी सेंटर दिए तो राशि दी सिर्फ 4 लाख। अब कह रहे हैं पहले इसका हिसाब तो दो आगे की राशि देंगे, ऐसे में विकास तो ठप होगा ही, जाहिर है काम भी रुकेगा। - श्रीकिशन गुर्जर, सरपंच, न्यारा
महानरेगा में लाखों की लागत से आईटी सेंटर स्वीकृ किए गए लेकिन एक का भी निर्माण पूरा नहीं हो पाया। गांवों की सरकारें पहले अपने स्तर पर ही टेंडर कर गांव का चहुंमुखी विकास कराती थीं। टेंडर करने का यह सिलसिला लंबे समय से ही चला आ रहा था। ग्राम पंचायत की योजनाओं के साथ-साथ महानरेगा के टेंडर भी सरपंच व ग्रामसेवक ही किया करते थे। ग्राम स्तर पर टेंडर करने से गांव के ठेकेदारों को भी रोजगार मिलता था। इधर, सरकार ने महानरेगा में भ्रष्टाचार की आड़ लेते हुए ग्राम पंचायतों से महानरेगा के टेंडर तो ग्राम पंचायतों से छीने ही, पंचायत की योजनाओं के लिए किए जाने वाले टेंडर भी छीनकर पंचायत समिति को दे दिए।
पंचायत समिति ने लंबी मशक्कत के बाद अपने स्तर पर ही टेंडर किए तो अलग-अलग सामग्री के अलग-अलग ठेकेदार हो जाने के कारण सामग्री ही समय पर सप्लाई नहीं कर पाए। आईटी सेंटर पर ठेकेदारों द्वारा घटिया सामग्री सप्लाई करने की भी सरपंचों ने शिकायतें ही लेकिन प्रशासन ने जांच करवाना मुनासिब ही नहीं समझा। सरपंचों ने अपने अधिकारी छीनने का जमकर विरोध किया, नतीजतन सरकार को झुकना पड़ा और 2 अक्टूबर को ग्राम पंचायतों को ही टेंडर करने के लिए स्वतंत्र कर दिया। लेकिन राज्य सरकार की विरोधाभासी व्यवस्था के कारण ग्राम पंचायतों द्वारा टेंडर करने के बाद भी वे अमल में नहीं आ पाए।
इसके पीछे वजह यह रही कि पंचायत समिति स्तर पर किए गए टेंडरों को निरस्त ही नहीं किया गया और ना ही ठेकेदारों को उनकी जमा राशि ही लौटाई। ऐसे में वर्तमान में दो-दो स्तर पर टेंडर प्रक्रिया हो गई और इन दोनों में से कम दर वाली फर्म से सामग्री खरीद नहीं करने पर वसूली का डर सताने लगा। इसकी वजह से सरपंचों ने सामग्री की खरीद ही नहीं कर पाई। टीएफसी व एसएफसी समेत अन्य योजनाओं में ग्राम पंचायत अपने स्तर पर काम करवाती है लेकिन पहले टेंडर का रोड़ा और बाद में टीएफसी की किश्त का उपयोग केवल हैंडपंप व बोरिंग करवाने में ही करने के लिए पाबंद करने के कारण वे अन्य कोई काम नहीं करवा पाए।
इसमें भी पीसांगन पंचायत समिति समेत कुछ अन्य स्थानों को डार्कजोन घोषित कर दिया गया। महानरेगा में भी केवल आईटी सेंटर के ही पक्के काम स्वीकृत किए गए। जिले में पिछले साल मार्च माह में 256 ग्राम पंचायतों में दस-दस लाख की लागत से आईटी सेंटर के काम स्वीकृत किए गए लेकिन दस माह बीत जाने के बावजूद टेंडरों के घालमेल में वह आधे-अधूरे ही पड़े हैं। अब ग्राम पंचायतों द्वारा किए गए टेंडर कब से अमल में आ पाएंगे, यह भी तय नहीं है। इन टेंडरों के लिए सरकार ने सरपंच व ग्रामसेवक पर विश्वास ना कर पूरी कमेटी बनाते हुए जेईएन व एकाउंटेंट को भी शामिल किया गया।
महानरेगा में गड़बड़ी के चलते मालातों की बेर के सरपंच गणपतसिंह व बोराड़ा के सरपंच रामसिंह चौधरी को जेल की हवा खानी पड़ी, वहीं जवाजा पंचायत समितियों में सरपंचों के नाम रिकवरी निकाली गई। गड़बड़ी के कारण ही महानरेगा में सरपंचों से मेट लगाने और श्रमिकों के नाम लिखने का अधिकार भी ग्राम पंचायतों से छीनकर पंचायत समिति स्तर पर दे दिया गया। यही वजह रही कि सरपंच अपने विश्वासपात्र को मेट तक नहीं बना पाए और विरोधी उन पर हावी रहे।
सरपंचों का एक साल यूं ही बरबाद हो गया। क्षेत्र का विकास नहीं कर पाए। पूरे साल टेंडरों को लेकर ही माथापच्ची करते रहे। अभी भी पंचायतों ने टेंडर कर लिए लेकिन वह अमल में नहीं आ पाए। पुराने टेंडर भी निरस्त नहीं हो पाए। - भूपेंद्र सिंह राठौड़, जिलाध्यक्ष सरपंच संघ
पंचायत क्षेत्र में कोई विकास नहीं करवा पाए। यहां तक की नालियों का निर्माण तक नहीं करा पाए। विकास नहीं होने से जनता सरपंचों को कोस रही है। आईटी सेंटर दिए तो राशि दी सिर्फ 4 लाख। अब कह रहे हैं पहले इसका हिसाब तो दो आगे की राशि देंगे, ऐसे में विकास तो ठप होगा ही, जाहिर है काम भी रुकेगा। - श्रीकिशन गुर्जर, सरपंच, न्यारा
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