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Sunday, January 30, 2011

महानरेगा श्रमिकों को मिलेगा एरियर!

Sunday, January 30, 2011
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महानरेगा श्रमिकों को मिलेगा एरियर!
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बांसवाड़ा। अकुशल श्रमिकों को एरियर। सुनने में अजीब लगे, लेकिन महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत नियोजित श्रमिकों के लिए यह खुशखबर जैसा ही है। न्यूनतम मजदूरी बढ़ने के बाद एक जनवरी से किसी श्रमिक को एक सौ रूपए का भुगतान होने पर शेष राशि बतौर एरियर दिए जाने के आदेश हुए हैं। भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से एक जनवरी से महानरेगा के तहत अकुशल शारीरिक श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी प्रति दिवस 119 रूपए कर दी गई है।

ऎसे में योजना के तहत स्वीकृत कार्य पर नियोजित श्रमिक को एक जनवरी से टास्क के आधार पर 119 रूपए भुगतान कराने के लिए कार्यकारी एजेंसियों को पाबंद किया गया है। महानरेगा आयुक्त तन्मय कुमार की ओर से 25 जनवरी को जारी आदेशानुसार एक जनवरी के बाद की अवधि का भुगतान यदि श्रमिक को एक सौ रूपए किया गया है, तो शेष उक्त अवधि के लिए श्रमिक को एरियर का भुगतान भी किया जाएगा। इस संबंध में प्रदेश के सभी जिला कार्यक्रम समन्वयकों को पाबंद किया गया है।

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कानून एक, मजदूरी अलग

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कानून एक, मजदूरी अलग
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भीलवाड़ा। संसद ने कानून बना समान रूप से पूरे देश में लागू किया, लेकिन मजदूरी के पैमाने अलग-अलग हो गए। किसी श्रमिक को प्रतिदिन 117 रूपए तो किसी को 179 रूपए तक मिल रहे हैं।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी अधिनियम-2005 (नरेगा) के तहत अकुशल शारीरिक कामगार (श्रमिक) को मिलने वाली मजदूरी राशि में 1 जनवरी से संशोधन हुआ। संशोधन की अधिसूचना केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 14 जनवरी को भारत सरकार के गजट में जारी कर दी। इस अधिसूचना के बाद राजस्थान में नरेगा मजदूरी राशि 100 रूपए से बढ़कर 119 रूपए भले हो गई, लेकिन हरियाणा में 179 रूपए या चण्डीगढ़ में 174 रूपए की तुलना में काफी कम है। राजस्थान उन राज्यों में शामिल हैं, जहां नरेगा श्रमिकों की मजदूरी राशि अन्य राज्यों की तुलना में कम है। हिमाचल प्रदेश में गैर अनुसूचित क्षेत्र में 120 रूपए तो अनुसूचित क्षेत्र में 150 रूपए मजदूरी है।

क्या है कारण
नरेगा में मजदूरी राशि अलग-अलग होने का एक कारण राज्यों में न्यूनतम मजदूरी राशि अलग-अलग होना है। राजस्थान में हाल ही मजदूरी 100 से बढ़ाकर 135 रूपए किया गया था, जबकि केरल, हरियाणा जैसे राज्यों में यह राशि 180 से 200 रूपए तक है।

राज्यों में नरेगा में अधिकतम मजदूरी राशि
राज्य राशि
असम 130
आन्ध्रप्रदेश 121
बिहार 120
गुजरात 124
हरियाणा 179
राजस्थान 119
जम्मू-कश्मीर 121
कर्नाटक 125
केरल 150
मध्यप्रदेश 122
महाराष्ट्र 127
मणिपुर 126
मेघालय 117
मिजोरम 129
नगालैण्ड 118
उड़ीसा 125
पंजाब 124
सिक्कम 118
तमिलनाडु 119
उत्तर प्रदेश 120
पश्चिम बंगाल 130
छत्तीसगढ़ 122
झारखण्ड 120
गोवा 138
चण्डीगढ़ 174
लक्षद्वीप 138


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नरेगा के 2009-10 के राष्ट्रीय पुरस्कार घोषित

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नरेगा के 2009-10 के राष्ट्रीय पुरस्कार घोषित
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बांसवाड़ा | महात्मा गांधी नरेगा के वर्ष 2009-10 के राष्ट्रीय पुरस्कार घोषित कर दिए गए हैं। ग्राम पंचायत श्रेणी में देश की श्रेष्ठ 11 पंचायतों में राजस्थान से दो पंचायतों का चयन हुआ है। इनमें बांसवाड़ा के कुशलगढ़ पंचायत समिति की बड़वास छोटी ग्राम पंचायत और भीलवाड़ा जिले से आसीन्द पंचायत समिति का रामपुरा शामिल है। जिला स्तर पर दस विभिन्न श्रेणियों में घोषित राष्ट्रीय पुरस्कारों में राजस्थान से बाड़मेर का चयन टीम लीडरशिप के लिए हुआ है। वहां के जिला कार्यक्रम समन्वयक एवं कलक्टर गौरव गोयल का नाम इस पुरस्कार के लिए चयनित हुआ है।

केन्द्रीय ग्रामीण विकास विभाग की संयुक्त सचिव अमिता शर्मा ने 27 जनवरी को इन पुरस्कारों की घोषणा की, जबकि पुरस्कार 2 फरवरी को दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित होने वाले समारोह में दिए जाएंगे। जिला स्तरीय पुरस्कार जिला कलक्टर एवं पंचायत स्तर का पुरस्कार सरपंचों को दिए जाएंगे।




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नरेगा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी

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नई दिल्ली : सरकार की महत्वपूर्ण योजना मनरेगा में भागीदारी के मामले में महिलाओं ने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया है। इस कार्यक्रम में महिलाओं की औसत हिस्सेदारी राष्ट्रीय स्तर पर 52 फीसदी है, लेकिन कई राज्यों में यह 70 फीसदी से ऊपर है। मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली छमाही तक केरल में 90 फीसदी महिलाओं की उत्कृष्ट भागीदारी दिखी, वहीं तमिलनाडु व पॉन्डिचेरी जैसे राज्यों में भी यह दर लगभग 80 फीसदी रही। राजस्थान व गोवा आदि में यह प्रतिशत करीब 70 रहा। यूपी में यह 20 फीसदी से नीची रही, वहीं बिहार, प.बंगाल में महिलाओं की सक्रियता महज 20-30 फीसदी नजर आई। नरेगा की शुरुआत गरीब (बीपीएल) ग्रामीणों के लिए रोजगार सुनिश्चित करने के लिए हुई हो, लेकिन यह उनके लिए अतिरिक्त आय के साधन भी बन गया है।

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नरेगा कार्यों में कोताही बरतने पर सचिव को एपीओ करने के आदेश

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विकास कार्य नही करवाए जाने पर ग्राम पंचायत निमेड़ा सचिव को निलंबित कर अन्य योग सचिव जिला परिषद सदस्य बासंती मीणा द्वारा लगाने की मांग पर अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने सचिव को एपीओ करने के विकास अधिकारी पंंचायत समिति टोंक को आदेश दिए।


जिला परिषद सदस्य बासंती देवी ने जिला परिषद के अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी को पत्र देकर अवगत कराया था कि उनके वार्ड 25 क्षेत्र की ग्राम पंचायत निमेडा में नरेगा, राच्य वित्त आयोग, 12वां वित्त आयोग, पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि योजना के स्वीकृत कार्य सचिव द्वारा नही कराए जा रहे है, जिससे स्वीकृतियां निरस्त होने की स्थिति में विकास कार्य नही होने से जनता के सामने जवाब देना मुश्किल हो रहा। इसलिए ग्राम पंचायत निमेड़ा सचिव बलवीर सिंह को तुरंत निलंबित कर अन्य योग्य सचिव को लगाया जाए, ताकि पंचायत में विकास कार्य हो सके। जिस पर अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी इकबाल हुसैन ने कार्यवाही करते हुए बीडीओ टोंक को निमेडा सचिव को एपीओ करने के निर्देश दिए।

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Saturday, January 22, 2011

छिने अधिकार लेने में ही रह गए सरपंच!

Saturday, January 22, 2011
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छिने अधिकार लेने में ही रह गए सरपंच!

अजमेर. पंचायतीराज संस्थाओं में 5 साल के लिए निर्वाचित हुए सरपंचों के कार्यकाल का एक साल बीत गया और अधिकार की लड़ाई में विकास के नाम पर वे कुछ नहीं कर पाए। पूरे साल सरपंच टेंडरों और छीने गए अधिकारों को वापस लेने में ही उलझकर रह गए। गांवों की सरकारें गंदे पानी की निकासी के लिए नालियां बनाने में भी नाकामयाब रहीं।

महानरेगा में लाखों की लागत से आईटी सेंटर स्वीकृ किए गए लेकिन एक का भी निर्माण पूरा नहीं हो पाया। गांवों की सरकारें पहले अपने स्तर पर ही टेंडर कर गांव का चहुंमुखी विकास कराती थीं। टेंडर करने का यह सिलसिला लंबे समय से ही चला आ रहा था। ग्राम पंचायत की योजनाओं के साथ-साथ महानरेगा के टेंडर भी सरपंच व ग्रामसेवक ही किया करते थे। ग्राम स्तर पर टेंडर करने से गांव के ठेकेदारों को भी रोजगार मिलता था। इधर, सरकार ने महानरेगा में भ्रष्टाचार की आड़ लेते हुए ग्राम पंचायतों से महानरेगा के टेंडर तो ग्राम पंचायतों से छीने ही, पंचायत की योजनाओं के लिए किए जाने वाले टेंडर भी छीनकर पंचायत समिति को दे दिए।

पंचायत समिति ने लंबी मशक्कत के बाद अपने स्तर पर ही टेंडर किए तो अलग-अलग सामग्री के अलग-अलग ठेकेदार हो जाने के कारण सामग्री ही समय पर सप्लाई नहीं कर पाए। आईटी सेंटर पर ठेकेदारों द्वारा घटिया सामग्री सप्लाई करने की भी सरपंचों ने शिकायतें ही लेकिन प्रशासन ने जांच करवाना मुनासिब ही नहीं समझा। सरपंचों ने अपने अधिकारी छीनने का जमकर विरोध किया, नतीजतन सरकार को झुकना पड़ा और 2 अक्टूबर को ग्राम पंचायतों को ही टेंडर करने के लिए स्वतंत्र कर दिया। लेकिन राज्य सरकार की विरोधाभासी व्यवस्था के कारण ग्राम पंचायतों द्वारा टेंडर करने के बाद भी वे अमल में नहीं आ पाए।

इसके पीछे वजह यह रही कि पंचायत समिति स्तर पर किए गए टेंडरों को निरस्त ही नहीं किया गया और ना ही ठेकेदारों को उनकी जमा राशि ही लौटाई। ऐसे में वर्तमान में दो-दो स्तर पर टेंडर प्रक्रिया हो गई और इन दोनों में से कम दर वाली फर्म से सामग्री खरीद नहीं करने पर वसूली का डर सताने लगा। इसकी वजह से सरपंचों ने सामग्री की खरीद ही नहीं कर पाई। टीएफसी व एसएफसी समेत अन्य योजनाओं में ग्राम पंचायत अपने स्तर पर काम करवाती है लेकिन पहले टेंडर का रोड़ा और बाद में टीएफसी की किश्त का उपयोग केवल हैंडपंप व बोरिंग करवाने में ही करने के लिए पाबंद करने के कारण वे अन्य कोई काम नहीं करवा पाए।

इसमें भी पीसांगन पंचायत समिति समेत कुछ अन्य स्थानों को डार्कजोन घोषित कर दिया गया। महानरेगा में भी केवल आईटी सेंटर के ही पक्के काम स्वीकृत किए गए। जिले में पिछले साल मार्च माह में 256 ग्राम पंचायतों में दस-दस लाख की लागत से आईटी सेंटर के काम स्वीकृत किए गए लेकिन दस माह बीत जाने के बावजूद टेंडरों के घालमेल में वह आधे-अधूरे ही पड़े हैं। अब ग्राम पंचायतों द्वारा किए गए टेंडर कब से अमल में आ पाएंगे, यह भी तय नहीं है। इन टेंडरों के लिए सरकार ने सरपंच व ग्रामसेवक पर विश्वास ना कर पूरी कमेटी बनाते हुए जेईएन व एकाउंटेंट को भी शामिल किया गया।

महानरेगा में गड़बड़ी के चलते मालातों की बेर के सरपंच गणपतसिंह व बोराड़ा के सरपंच रामसिंह चौधरी को जेल की हवा खानी पड़ी, वहीं जवाजा पंचायत समितियों में सरपंचों के नाम रिकवरी निकाली गई। गड़बड़ी के कारण ही महानरेगा में सरपंचों से मेट लगाने और श्रमिकों के नाम लिखने का अधिकार भी ग्राम पंचायतों से छीनकर पंचायत समिति स्तर पर दे दिया गया। यही वजह रही कि सरपंच अपने विश्वासपात्र को मेट तक नहीं बना पाए और विरोधी उन पर हावी रहे।

सरपंचों का एक साल यूं ही बरबाद हो गया। क्षेत्र का विकास नहीं कर पाए। पूरे साल टेंडरों को लेकर ही माथापच्ची करते रहे। अभी भी पंचायतों ने टेंडर कर लिए लेकिन वह अमल में नहीं आ पाए। पुराने टेंडर भी निरस्त नहीं हो पाए। - भूपेंद्र सिंह राठौड़, जिलाध्यक्ष सरपंच संघ

पंचायत क्षेत्र में कोई विकास नहीं करवा पाए। यहां तक की नालियों का निर्माण तक नहीं करा पाए। विकास नहीं होने से जनता सरपंचों को कोस रही है। आईटी सेंटर दिए तो राशि दी सिर्फ 4 लाख। अब कह रहे हैं पहले इसका हिसाब तो दो आगे की राशि देंगे, ऐसे में विकास तो ठप होगा ही, जाहिर है काम भी रुकेगा। - श्रीकिशन गुर्जर, सरपंच, न्यारा


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Monday, January 17, 2011

NREGA, MGNREGA

Monday, January 17, 2011
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नरेगा कार्य शुरू नहीं

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नरेगा कार्य शुरू नहीं

भीलवाड़ा। गांव में मांगते ही काम उपलब्ध कराने वाली महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना पर अनापत्ति प्रमाण पत्र (यूसी) का फंदा कस गया है। यूसी के अभाव में जिले में कई स्थानों पर नरेगा कार्य शुरू नहीं हो पा रहे हंै।

सरकार की ओर से आवंटित राशि की शत प्रतिशत यूसी अब तक किसी पंचायत समिति से नहीं मिली है। कुछ पंचायत समितियों द्वारा 60 प्रतिशत से अधिक राशि की यूसी भेजने के बाद भी जिला परिषद की औपचारिकताएं पूरी नहीं होने से राशि अटक गई। यूसी के 'चक्रव्यूह' में नरेगा कार्य इस तरह घिर गए हैं कि जिले की रायपुर जैसी एक-दो पंचायत समितियों में तो गत दो-तीन माह से नरेगा कार्य ठप हैं।

यूसी के चक्कर में नरेगा कार्यो में सामग्री आपूर्ति करने वाले ठेकेदारों के करोड़ों रूपए भी अटके हुए हैं। हाल ही जिला परिषद की बैठक में सहाड़ा विधायक कैलाश त्रिवेदी सहित कई सदस्यों ने यूसी के अभाव में नरेगा के हाल-बेहाल होने का मुद्दा जोरशोर से उठाया था। इसके बाद जिला कलक्टर औंकार सिंह के निर्देश पर अब नरेगा के लेखाधिकारी पंचायत समिति मुख्यालयों पर जाकर बकाया यूसी के प्रकरण निपटाने में लगे है।

पंचायत समिति स्तर से भेजी जाने वाली प्रत्येक यूसी की जिला स्तर पर लेखाधिकारियों द्वारा छानबीन के चक्कर में देरी हो रही है। जिला परिषद की बैठक में उप जिला प्रमुख गजमल जाट ने भी इस तथ्य को स्वीकारा। सदस्यों ने हर यूसी की छानबीन कर भुगतान में देरी के बजाय केवल उसी यूसी का सत्यापन करने की मांग की जिस पर शंका हो।

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Sunday, January 16, 2011

गारंटी काम की, दाम की नहीं

Sunday, January 16, 2011
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गारंटी काम की, दाम की नहीं

केंद्र में सत्तारुढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानती तो है मगर इस योजना का क्रियान्वयन उस तरह नहीं हो पाया है जैसा सोचा गया था.

आज भी इस योजना के तहत काम करने वालों को अपने पैसों के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ता है. किसी किसी को तो 100 दिन के काम के लिए 100 दिनों से भी ज़्यादा तक.

छत्तीसगढ़ के सरगुजा ज़िले में पित्बासु भोय उन कुछ एक बदकिस्मत लोगों में से हैं जिन्हें उनकी मज़दूरी के पैसे नहीं मिल पाए. ग़रीबी की रेखा से नीचे रहने वाले भोय के जवान बेटे ने पैसों के अभाव में दम तोड़ दिया है.

छत्तीसगढ़ के सरगुजा ज़िले का पम्पापुर गाँव. यहाँ मातम छाया हुआ है. इसी गाँव के 58 वर्षीय पित्बासु भोय अपने बीमार जवान बेटे का अंतिम संस्कार करके लौटे हैं.

नुक़सान

तंगहाली की मार की वजह से भोय इतने पैसे जुटा नहीं पाए जिससे उनके बेटे का इलाज समय पर होता. इलाज के लिए उन्होंने राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना के तहत काम भी किया लेकिन सौ दिनों तक काम करने के बावजूद उन्हें एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिली.

सितंबर माह में मैंने अपना पंजीयन कराया था. मैं, मेरी बीवी और मेरा विकलांग बेटा- हम तीनों ने पंचायत में ग्रामीण रोज़गार योजना के तहत काम किया. मेरे बेटे का पंजीयन नहीं हुआ था इसलिए उसे पैसे नहीं मिले. मुझसे कहा गया कि जल्द ही मिल जाएँगे. मैं दफ़्तरों के चक्कर लगाते-लगाते थक गया. किसी ने मेरी एक नहीं सुनी

पित्बासु भोय

आख़िरकार उन्होंने किसी से दो सौ रूपए उधार लिए और अपने बच्चे को अस्पताल में भर्ती कराया. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. भोय कहते हैं कि अगर उन्हें पैसे वक़्त पर मिल जाते तो शायद वो अपने बेटे का इलाज करा पाते और वह बच जाता.

बीबीसी के साथ बातचीत में भोय ने कहा, "मुझे पक्का भरोसा है कि मुझे अगर मेरी मज़दूरी समय पर मिल जाती तो मैं अपने बेटे का सही इलाज करा पाता."

भोय का कहना है कि मनरेगा की मज़दूरी के लिए हर दरवाज़े को खटखटाते रहे मगर किसी ने उनकी नहीं सुनी.

उन्होंने कहा, "सितंबर माह में मैंने अपना पंजीयन कराया था. मैं, मेरी बीवी और मेरा विकलांग बेटा- हम तीनों ने पंचायत में ग्रामीण रोज़गार योजना के तहत काम किया. मेरे बेटे का पंजीयन नहीं हुआ था इसलिए उसे पैसे नहीं मिले. मुझसे कहा गया कि जल्द ही मिल जाएँगे. मैं दफ़्तरों के चक्कर लगाते-लगाते थक गया. किसी ने मेरी एक नहीं सुनी."

फ़रियाद

भोय का कहना है कि कमिश्नर से लेकर अपर कलेक्टर तक को उन्होंने अपनी फ़रियाद सुनाई. सबका एक ही आश्वासन था कि पैसे जल्द मिल जाएँगे. लेकिन सौ दिनों से भी ज़्यादा बीत जाने पर भोय ने आस छोड़ दी.

पैसे बैंकों में जाते हैं. लेकिन वहां काफ़ी वक़्त लग जाता है. पोस्ट ऑफ़िस का हाल और बुरा है

संजय सिंह, मुख्य कार्यपालक अधिकारी

बाद में कुछ सामजिक संगठनों की पहल पर जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने भोय को भुगतान का आश्वासन दिया है.

इस बाबत पूछे जाने पर अंबिकापुर जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालक अधिकारी संजय सिंह पहले तो कहते रहे कि मज़दूरी के भुगतान में कोई विलंब नहीं होता है. लेकिन भोय का उदहारण देने पर उन्होंने सारा दोष बैंकों के सर मढ़ दिया.

उन्होंने कहा, "पैसे बैंकों में जाते हैं. लेकिन वहां काफ़ी वक़्त लग जाता है. पोस्ट ऑफ़िस का हाल और बुरा है." वैसे उन्होंने कहा कि भोय के मामले से वह अवगत हैं और उसे जल्द ही मज़दूरी मिल जाएगी.

वहीं सरगुजा ग्रामउत्थान समिति के राकेश राय का कहना है कि सिर्फ़ पित्बासु भोय ही नहीं, मनरेगा में मज़दूरी देने में अनियमितता बरतना एक आम चलन सा हो गया है.

राकेश राय कहते हैं, "मज़दूरी समय पर नहीं मिलना एक आम चलन सा हो गया है. इस योजना के तहत और भी बहुत सारी अनियमितताएँ हैं."

जहाँ तक अनियमितता का सवाल है, हाल ही में कम से कम 27 संगठनों नें छत्तीसगढ़ में ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना का एक बड़ा अध्ययन किया तो कई चौंका देने वाले तथ्य सामने आए.

विलंब

इस दौरान पता चला है कि छत्तीसगढ़ के 68 प्रतिशत मज़दूरों को मज़दूरी के भुगतान में एक महीने से भी ज़्यादा विलंब झेलना पड़ता है.

भोय का पासबुक

आरोप है कि समय पर पासबुक में पैसे नहीं जाते

शोध में पाया गया है कि मज़दूरी के भुगतान में विलंब की वजह से जो बहुत ही ग़रीब परिवार हैं वह रोज़गार गारंटी योजना से कटते जा रहे हैं और पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं.

शोध में और एक चौंका देने वाला पहलू सामने आया है और वह है कि छत्तीसगढ़ के 24 प्रतिशत मज़दूरों के जॉब कार्ड या तो रोज़गार सहायक या फिर सरपंचों ने रखे हैं और अधिकांश कार्यस्थलों पर मस्टर रोल में सीधे हाजिरी ना भरकर कच्चे खातों में भरी जा रही है.

अध्ययन में पता चला कि इस योजना के तहत अक्तूबर 2009 से सितंबर 2010 के बीच केवल 44 दिन प्रति परिवार को ही काम मिल पाया है. इसके अलावा जांजगीर और जशपुर ज़िलों में सरकारी फ़ाइलों में दर्ज कार्य दिवस और मज़दूरों के बताए कार्य दिवसों में काफ़ी अंतर देखने को मिला.

यह इस बात का संकेत है कि इन इलाक़ों में फर्ज़ी हाजिरी के ज़रिए सरकारी आंकड़े बनाए गए थे. अध्ययन में पाया गया कि जशपुर ज़िले में स्थिति चिंताजनक है क्योंकि वहाँ पर 64 प्रतिशत मज़दूर अपने जॉब कार्ड में दर्ज कार्य दिवसों से संतुष्ट नहीं हैं.

शोध में सरकारी आंकड़ों के हवाले से बताया गया है कि 2009-2010 में कुल जॉब कार्डधारियों में से सिर्फ़ 57 प्रतिशत परिवारों को ही काम मिल पाया है.

इस अध्ययन का ढांचा प्रोफ़ेसर ज्यां द्रेज़ ने तैयार किया था. हालाँकि रायपुर में एक जन सुनवाई के दौरान राज्य के मनरेगा आयुक्त के सुब्रमण्यम ने आश्वासन दिया था कि अनियमितताओं को जल्द ही दूर कर लिया जाएगा. लेकिन ग्रामीण छत्तीसगढ़ को इसका बेसब्री से इंतज़ार है.

मनरेगा के तहत ग्रामीण इलाकों में साल में कम से कम सौ दिनों के काम की सरकारी गारंटी है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तो बढती हुई महंगाई का ठीकरा भी मनरेगा पर ही फोड़ दिया.

उनका कहना है कि मनरेगा जैसी योजना की वजह से लोगों के पास काफ़ी पैसा आ गया है और यह बढ़ती हुई महंगाई का भी एक कारण है.

हक़ीकत में देखा जाए तो योजना में रोज़गार की गारंटी तो कहीं-कहीं पर है. लेकिन मज़दूरी कब मिलेगी? इसकी कोई गारंटी नहीं.

अगर जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालक अधिकारी की पहल पर पित्बासु भोय को उनकी लंबित मज़दूरी मिल भी जाती है तो क्या. अब वे यही कहेंगे- हुज़ूर आते-आते बहुत देर कर दी. क्योंकि अब यह रक़म उनका जवान बेटा वापस नहीं ला सकता.


सौ .सलमान रावी बीबीसी संवाददाता, रायपुर


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मनरेगा की मजदूरी

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मनरेगा की मजदूरी
सौ. इस्पात टाइम्स, 17-Jan, 1:40 AM

(आनंद प्रधान)

न्यूनतम मजदूरी कानून लागू करने से पीछे हट रही सरकार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अड़े हुए हैं कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना यानी मनरेगा के तहत मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी नहीं दी जा सकती। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की चिट्ठी के जवाब में उन्होंने इतना ही कहा है कि मनरेगा के तहत निश्चित 100 रुपए प्रतिदिन की मजदूरी दर को अधिक से अधिक मुद्रास्फीति के साथ जोड़ा जा सकता है। उनकी इस चिट्ठी के बाद केंद्र सरकार ने मनरेगा के तहत विभिन्न राज्यों में दी जा रही मजदूरी में मुद्रास्फीति के आधार पर 17 से लेकर 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी करने का ऐलान किया है, लेकिन यह पिछले दो वर्षों की भारी महंगाई की तुलना में ऊंट के मुंह में जीरे की तरह ही है।

उल्लेखनीय है कि कुछ महीने पहले ही सरकार ने सांसदों-मंत्रियों के वेतन में 300 से 400 फीसदी की बढ़ोतरी की है, लेकिन गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे मजदूरों की मजदूरी में सिर्फ 17 से 30 प्रतिशत की वृद्धि की बात कही गई है। जाहिर है कि इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है! इस फैसले से यह पूरी तरह साफ हो गया है कि केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार मनरेगा की मजदूरी दर को विभिन्न राज्यों की न्यूनतम मजदूरी के बराबर करने के लिए तैयार नहीं है। सरकार के इस सख्त फैसले से करोड़ों मजदूरों के साथ-साथ उन जन संगठनों को भी घोर निराशा हुई है, जो मनरेगा की मजदूरी को राज्यों की न्यूनतम मजदूरी दर के बराबर करने की मांग को लेकर पिछले कई महीनों से केंद्र सरकार से लड़ाई लड़ रहे हैं।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास अपने इस फैसले के पक्ष में कोई तर्क नहीं है-न कानूनी, न सांविधानिक, न राजनीतिक और न ही नैतिक। उनके पास अपने फैसले के पक्ष में आर्थिक तर्क भी नहीं है। आखिर कोई सरकार संसद द्वारा पारित न्यूनतम मजदूरी कानून का उल्लंघन भला कैसे कर सकती है? यहां तक कि खुद केंद्र सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने इस मामले में अपनी कानूनी राय में कहा था कि न्यूनतम मजदूरी कानून से कम मजदूरी देना कानून सम्मत नहीं है और इसे जबरन श्रम या बंधुआ मजदूरी ही माना जाएगा।

इससे पहले आंध्र उच्च न्यायालय ने भी मनरेगा के तहत राज्य सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम मजदूरी से भी कम मजदूरी देने पर नाराजगी जाहिर करते हुए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री के उस सर्कुलर पर आंध्र प्रदेश में रोक लगा दी थी, जिसमें मनरेगा के तहत मजदूरी को सौ रुपये प्रतिदिन फिक्स कर दिया गया था। हैरत देखिए, इसके बावजूद केंद्र सरकार मनरेगा की मजदूरी को न्यूनतम मजदूरी के बराबर न करने के अपने फैसले पर अड़ी हुई है। यह सिर्फ अन्यायपूर्ण ही नहीं है, बल्कि श्रमिकों के सांविधानिक अधिकारों का उल्लंघन भी है।

सर्वोच्च न्यायालय ने भी कुछ वर्ष पूर्व एक फैसले में कहा था कि सरकार को एक आदर्श नियोक्ता की तरह पेश आना चाहिए। लेकिन जब केंद्र सरकार खुद ही न्यूनतम मजदूरी देने के लिए तैयार नहीं है, तो वह निजी नियोक्ताओं को न्यूनतम मजदूरी देने के लिए भला कैसे बाध्य कर सकती है? यह कितना बड़ा मजाक है कि जिससे आदर्श नियोक्ता बनने की अपेक्षा की जा रही है, वह खुद ही कानून की धज्जियां उड़ा रहा है, जो एक तरह से निजी नियोक्ताओं को मनमानी करने का लाइसेंस देने की तरह ही है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि निजी क्षेत्र ने न्यूनतम मजदूरी कानून की कभी परवाह नहीं की। बल्कि यह क्यों न माना जाए कि सरकार की चुप्पी और कई बार खुली सहमति से ही निजी क्षेत्र इस कानून को लगातार ठेंगा दिखाता रहा है।

असल में, यूपीए सरकार ने मनरेगा की मजदूरी का यह फैसला निजी क्षेत्र के दबाव और वित्तीय कठमल्लावाद के असर में लिया है। यह तथ्य किसी से छिपा हुआ नहीं है कि निजी क्षेत्र मनरेगा के कारण मजदूरों की अनुपलब्धता और मजदूरी में बढ़ोतरी की शिकायत करता रहा है। निजी क्षेत्र के मुताबिक मनरेगा के कारण मजदूर गांवों में ही रुक जा रहे हैं, जिससे श्रमिकों की उपलब्धता प्रभावित हो रही है और कम उपलब्धता के कारण उनकी मजदूरी में भी इजाफा करना पड़ रहा है। इससे आधारभूत परियोजनाएं और निर्माण क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं।

निजी क्षेत्र को यह भी आशंका है कि अगर मनरेगा के तहत मजदूरी न्यूनतम मजदूरी के बराबर कर दी गई, तो न सिर्फ मजदूर नहीं मिलने की समस्या और बढ़ जाएगी, बल्कि उन्हें मजदूरी दर में और बढ़ोतरी करने के लिए भी मजबूर होना पड़ेगा। इस तरह खुलकर न कहते हुए भी निजी क्षेत्र का केंद्र सरकार पर दबाव है कि वह न सिर्फ मनरेगा के तहत मजदूरी न बढ़ाए, बल्कि इस पूरी योजना को इस हद तक अनाकर्षक बना दे कि मजदूर उसकी तरफ देखे भी नहीं, ताकि निजी क्षेत्र बिना किसी रोकटोक के मजदूरों के श्रम का बदस्तूर शोषण करता रह सके।

केंद्र सरकार के इस फैसले से निजी क्षेत्र की यह इच्छा तो पूरी हुई ही है, इससे सरकार में बैठे उन वित्तीय कठमुल्लावादियों की भी इच्छा पूरी हो गई है, जो इस योजना का शुरू से ही इस आधार पर विरोध करते रहे हैं कि इससे सरकार का वित्तीय घाटा बढ़ जाएगा। वे पहले से ही इस योजना को निरर्थक, सरकारी खजाने में छेद और आर्थिक रूप से अनुपयोगी मानते रहे हैं। बल्कि उनका वश चलता, तो यह योजना कभी अमल में ही नहीं आती, लेकिन उनके न चाहने पर भी राजनीतिक कारणों से यह योजना लागू हुई। अलबत्ता लागू होने के बाद से ही मजदूरों को अस्थायी रोजगार देने वाली इस योजना को विफल करने की कोशिशें होती रही हैं। न्यूनतम मजदूरी देने से इनकार करना भी इन्हीं कोशिशों का हिस्सा है।


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Friday, January 14, 2011

नरेगा कार्यों का बहिष्कार

Friday, January 14, 2011
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घड़साना ग्राम रोजगार सहायक के अनुबंध समाप्त के विरोध में मनरेगा संविदा कर्मचारी संघ के जिला कार्यकारणी नें नरेगा कार्यो का बहिष्कार करनें का निर्णय लिया है। जिलाध्यक्ष घनश्याम डींगवाल ने बताया कि इस संबंध में शुक्र वार को जिला कलेक्टर को पत्र लिखकर समस्या से अवगत करवाया। पत्र में बताया कि मनरेगा के अन्तर्गत ग्राम पंचायत चार केपीडी में कार्यरत ग्राम रोजगार सहायक पार्वती देवी का अनुबंध समाप्त कर दिया गया जो कि अनुचित है। पत्र में अवगत करवाया कि रोजगार सहायको को पिछले चार माह से वेत नहीं मिला इसके बावजूद भी वे आर्थिक परेशानी में कार्य कर रहें है। डींगवाल नें बताया कि सहायक के अनुबंध समाप्त के विरोध में जिला कार्यकारणी ने सर्वसम्मति से घड़साना पंसं के सभी नरेगा कार्यो का बहिष्कार किया है।
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घड़साना & ग्राम रोजगार सहायक के अनुबंध समाप्त करने के विरोध में मनरेगा संविदा कर्मचारी संघ के जिला कार्यकारणी ने नरेगा कार्यों का बहिष्कार का निर्णय लिया है। जिला अध्यक्ष घनश्याम डींगवाल ने बताया कि शुक्रवार को जिला कलेक्टर का पत्र देकर ग्राम पंचायत चार केपीडी में कार्यरत ग्राम रोजगार सहायक पार्वती देवी का अनुबंध समाप्त करना गलत है। चार माह से वेतन नहीं मिलने के बावजूद रोजगार सहायक किसी तरह काम कर रहे हैं।

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Thursday, January 13, 2011

नरेगा : आर्थिक आर्थिक गड़बड़ियों की फाइल ठंडे बस्ते

Thursday, January 13, 2011
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नरेगा : आर्थिक आर्थिक गड़बड़ियों की फाइल ठंडे बस्ते
Source: राधेश्याम दांगी

भोपाल. तीन साल पहले सीधी कलेक्टर व जिला पंचायत सीईओ द्वारा नरेगा में की गई आर्थिक गड़बड़ियों में आज तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। इसका कारण है कि कार्रवाई करने का जिम्मा जिन दो विभागों पर है, वही इसकी फाइल को दबाकर बैठ गए हैं। इतना ही नहीं, आर्थिक अनियमितताओं से जुड़े दस्तावेजों को सार्वजनिक करने के बजाय जिम्मेदार सूचना आयोग को भी ठेंगा दिखा रहे हैं। आयोग के स्पष्ट निर्देशों के बाद भी रोजगार गारंटी परिषद का कहना है कि उसने दस्तावेज शासन को भेज दिए हैं, अब जानकारी भी वहीं से लें।


नरेगा में जमकर आर्थिक गड़बड़ी करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई करने के बजाय जिम्मेदार अधिकारी चुप बैठे हैं। अब पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने इससे जुड़े अधिकारियों के आरोप पत्र व फाइलें सामान्य प्रशासन विभाग को दे दिए हैं, लेकिन वह भी कोई कार्रवाई नहीं कर रहा। इधर, सीधी में हुई गड़बड़ी के मामले तो रोजगार गारंटी परिषद ने जानकारी देने से ही मना कर दिया है। गौरतलब है कि डीबी स्टार ने नरेगा में हुए करोड़ों के घपले को जून-जुलाई-२क्क्९ के अंक में प्रमुखता से उठाया था। इसमें प्रदेश के कई जिलों में हुई गड़बड़ियों को उजागर किया गया था। साथ ही सामान्य प्रशासन विभाग, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग और रोजगार गारंटी परिषद के बीच कार्रवाई के लिए चल रहे पत्राचार को उजागर किया था। लेकिन अब जबकि कुछ अधिकारियों के आरोप पत्र सामान्य प्रशासन विभाग को मिल चुके हैं, तो भी उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।


पीएस से करें बात


मेरे बेटे की शादी है और मैं उसमें व्यस्त हूं। आप इस मामले पर पीएस से बात कर लीजिए।


कन्हैयालाल अग्रवाल, राज्य मंत्री, सामान्य प्रशासन विभाग, मप्र शासन


कोई पत्र लंबित नहीं है


मेरे दफ्तर में एक भी कागज-चिट्ठी-पत्र लंबित नहीं है। हमारा नियम है कि जो शिकायत आती है, २४ घंटे के अंदर अधिकारियों को जांच के लिए भेज दें। हमने इस मामले की फाइलें भी सामान्य प्रशासन विभाग को भेज दी हैं।


गोपाल भार्गव, मंत्री, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, मप्र शासन


मैं कुछ नहीं बता सकता


इस मामले में आप लोक सूचना अधिकारी वेद प्रकाश से बात कर लीजिए। वे आपको पूरी जानकारी दे देंगे। मंै कुछ नहीं बता सकता।


शिवशेखर शुक्ला, सीईओ, मप्र राज्य रोजगार गारंटी परिषद



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Wednesday, January 12, 2011

सामाजिक अंकेक्षण हेतु ग्राम सभाओं की तिथिया

Wednesday, January 12, 2011
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डूंगरपुर राज्य सरकार के निर्देशानुसार महात्मा गांधी नरेगा योजना के अंतर्गत वर्ष 2010 11 की द्वितीय छः माही के सामाजिक अंकेक्षण हेतु ग्राम सभाओं की तिथिया निर्धारित कर दी गई है। जिला कलक्टर पूर्ण चन्द्र किशन ने बताया कि सामाजिक अंकेक्षण के तिथियों के मुताबिक 10 फरवरी को डूंगरपुर पंचायत समिति व सागवाडा पंचायत समिति में ग्राम सभा का आयोजन होगा वहीं 17 फरवरी को सीमलवाडा व आसपुर पंचायत समिति तथा 24 फरवरी को बिछीवाडा पंचायत समिति में ग्राम सभाएं आयोजित होगी।


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Tuesday, January 11, 2011

नरेगा संविदाकर्मियों ने की आंदोलन को लेकर बैठक

Tuesday, January 11, 2011
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महात्मा गांधी नरेगा में कार्यरत संविदा कार्मिकों ने योजना के प्रावधानों के अनुसार मानदेय देने पर रोष व्यक्त करते हुए आंदोलन की रणनीति तय की है। मंगलवार को हुई बैठक में वक्ताओं ने कहा कि उनकी मांगों पर यदि विभाग कार्रवाई नहीं करता है तो आगामी दिनों में आंदोलन होगा।

उपाध्याय पार्क में हुई बैठक में आगामी रणनीति तय करते हुए प्रावधानों के तहत मानदेय नहीं देने का आरोप विभाग पर लगाया। इस संबंध में विभागीय उच्चाधिकारी एवं संबंधित मंत्री को ज्ञापन भेजा गया है। जिलाध्यक्ष दीपक कुमार ने बताया कि राज्य सरकार ने संविदा कार्मिकों के लिए प्रावधान तय किए है तथा निर्धारित मानदेय को लेकर सभी जिला परिषदों को आदेश जारी किए है। इसके बावजूद भी जिले में जिला स्तर, ब्लॉक स्तर एवं पंचायत समिति स्तर पर कार्मिकों को अगल अगल मानदेय दिया जा रहा है।
इस बीच वरिष्ठ तकनीकी सहायक, अभियांत्रिकी सहायक, कनिष्ठ लिपिक आदि के पद सरकार ने समाप्त कर दिए है तथा वर्तमान में कार्यरत कार्मिक कोर्ट के स्टे आर्डर पर कार्य कर रहे है। ऐसे में यह भी मांग की है कि पद समाप्त न करने का आदेश जारी किए जाए।

इन विषयों पर हुई चर्चा

बैठक में बताया गया कि तकनीकी सहायक के पद पर कार्यरत कार्मिकों का वेतन 30 प्रतिशत बढ़ाया गया लेकिन नरेगा प्रकोष्ठ के संविदा कार्मिकों के वेतन में वृद्धि नहीं की गई। इसी प्रकार से कोर्ट से स्टे आर्डर लेकर कार्य रहे कार्मिकों की स्थिति को यथावत रखने के निर्देश है लेकिन विभाग इसकी पालना नहीं कर रहा है। जो कार्मिक पिछले कई सालों से कार्य कर रहे है उन्हे 10 प्रतिशत का परिलाभ नहीं मिल रहा है। वहीं पीएफ तथा जीवन बीमा निगम का लाभ देने की भी मांग की है। उपरोक्त विषयों पर विचार विमर्श किया गया। इस मौके पर लोकेश पुरोहित, कैलाश पंड्या, प्रहलाद सिंह, जितेश पटेल, रोहिणी शाह, मोहम्मद रफी आदि मौजूद थे।




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नरेगा में घपला : सरपंच ने किया पति को 95 लाख भुगतान

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जयपुर.सिरोही जिले की शिवगंज पंचायत समिति की वेरा जेतपुरा ग्राम पंचायत में नरेगा के कामों में 1.67 करोड़ रु. से ज्यादा का घपला सामने आया है। खास बात यह है कि इस राशि में से करीब 94.73 लाख का भुगतान इस ग्राम पंचायत की निर्वतमान महिला सरपंच रतिबाई ने अपने ही पति को कर दिया।


यह भुगतान भी एकाउंट पेयी चैक की जगह बियरर चैक से किया गया। इस ग्राम पंचायत की 2008-09 और 2009-10 की अवधि की विशेष ऑडिट में इस घपले का खुलासा हुआ है। शिवगंज के तहसीलदार नंदकिशोर राजौरा के नेतृत्व में हुई इस विशेष ऑडिट की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि सरपंच रतिबाई ने नरेगा के कामों के लिए सबसे ज्यादा भुगतान अपने पति धीराराम रैबारी को किया।


धीराराम को 2008-09 में बजरी, कांकरी, मूंगिया, पत्थर, ग्रेवल, पानी के टैंकर और मिक्सचर के नाम पर 66,93,653 रु. और 2009-10 में 27,79,611 रुपए का भुगतान किया गया।


इस अवधि में वेरी जेतपुरा में मंगलसिंह देवड़ा ग्राम सेवक और श्रवण कुमार परिहार ग्राम रोजगार सहायक के पद पर थे। इस मामले में कलेक्टर ने भी स्वीकारा है कि अनियमित भुगतान किसी को नहीं किया जा सकता।


इस ग्राम पंचायत की विशेष ऑडिट अक्टूबर-नवंबर 2010 में कराई गई और इस टीम में तहसीलदार राजौरा के अलावा पंचायत समिति सिरोही के एईएन, एएओ (नरेगा) और एकाउंटेंट शामिल थे। मेरे कार्यकाल का मामला नहीं : पूर्व सीईओ


मेरे कार्यकाल का मामला नहीं है और मुझे इसकी ज्यादा जानकारी भी नहीं है। मैंने इस पंचायत की जांच कर कलेक्टर को रिपोर्ट पहले ही दे दी थी। उस समय कितना घपला था, मुझे याद नहीं।


सुआलाल, पूर्व सीईओ, सिरोही जिला परिषद


पानी, सीमेंट-कंक्रीट सबमें घालमेल


>शिवगंज से 10,47,458 रु. और 15,37,235 रु. की सीमेंट बिना टेंडर खरीदी।>ग्रेवल, रोड रोलर किराया, पानी के टैंकर, बजरी, कांकरी, मिक्सचर आदि के लिए 27,42,714 रु., 4,56,400 रु., 2,33,756 रु. और 4,95,485 रु. का भुगतान अलग-अलग लोगों को बियरर चैक से किया गया।


>इसके अलावा अन्य खरीदों के लिए चार अन्य लोगों को भी 10,000 से 1,00,000 रु. का भुगतान बियरर चैक से किया, जबकि नियमों के हिसाब से 1000 रु. से अधिक का भुगतान एकाउंट पेयी चैक से किया जाना चाहिए।


>सीमेंट की आपूर्ति बिना बिल की गई। खरीदी सामग्री का भंडार बुक में दर्ज नहीं। बिना भौतिक सत्यापन के भुगतान किया गया।


>ग्राम पंचायत की ओर से किए गए भुगतान को ग्राम सेवक और सरपंच ने हस्ताक्षरित और प्रमाणित नहीं किया।


तकनीकी जांच में भी लाखों की खामियां


वेरा जेतपुरा ग्राम पंचायत के नरेगा कामों की तकनीकी जांच के दौरान भी पांच स्थानों पर ग्रेवल रपट निर्माण की रोलर से कुटाई करना नहीं पाया गया, जबकि इनके लिए 4,87,251 रुपए का भुगतान किया गया है।


इसके अलावा मस्टररोल की रेंडम जांच में भी कई अनियमितताएं पाई गई हैं। तकनीकी जांच में मिली खामियों के लिए 4.87 लाख रु. की वसूली निकाली गई है।


रिपोर्ट सरकार को भेजी


"विशेष ऑडिट की रिपोर्ट राज्य सरकार को भेज दी है। अब कार्रवाई क्या करनी है, यह लोक लेखा समिति (पीएसी) तय करेगी। मुझे इस घपले के बारे में ऑडिट से पहले जानकारी नहीं थी।"


देव आनंद माथुर, एसीईओ, जिला परिषद, सिरोही


दोषी बख्शे नहीं जाएंगे


"जिला परिषद की साधारण सभा की बैठक में यह मामला उठा था, लेकिन मुझे अभी रिपोर्ट मिली नहीं है। ऐसे में मैं कुछ कह नहीं सकता। वैसे अगर किसी ने घपला किया है तो उसे बख्शा नहीं जाएगा। अनियमित भुगतान सरपंच के पति को तो क्या अनरजिस्टर्ड फर्म को भी नहीं किया जा सकता। "


श्रीराम मीणा, कलेक्टर, सिरोही


दस्तावेज नहीं मिले


जांच दल को स्टॉक रजिस्टर, परिसंपत्ति रजिस्टर, चैक बुक काउंटर और टैंडर फाइल उपलब्ध ही नहीं करवाई गई। वर्तमान कार्यरत ग्रामसेवक महेश कुमार दवे ने लिखित में दिया है कि उन्हें ये दस्तावेज चार्ज में नहीं दिए गए।

सौ भास्‍कर डाट कॉम


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Friday, January 7, 2011

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना

Friday, January 7, 2011
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सेटेलाइट शाखा के जरिये होगा भुगतान

रांची: उप मुख्यमंत्री सुदेश महतो ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) व अन्य फ्लैगशिप योजनाओं को ऑनलाइन करने के मुद्दे पर शुक्रवार को बैंकरों के साथ बैठक की. जिसमें बताया गया कि यूआइडी प्रोजेक्ट में मनरेगा, छात्रवृत्ति, ओल्ड एज पेंशन, जन वितरण प्रणाली और एक अन्य योजना को लिया जा रहा है. मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने भी इस मामले पर पांच योजनाओं को यूआइडी कार्यक्रम में शामिल करने का निर्देश दिया है.

बैठक में बैंकरों से सेटेलाइट शाखा खोल कर नरेगा के मजदूरों का भुगतान सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया. उप मुख्यमंत्री ने कहा कि नरेगा की मजदूरी का भुगतान पंचायत मुख्यालय से होना जरूरी है. उन्होंने प्रज्ञा केंद्र की मदद लेने की बातें भी कही. बैठक में ग्रामीण विकास विभाग के प्रधान सचिव संतोष सतपथी
, नरेगा आयुक्त समेत राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति से जुड़े बैंकों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.

जिंदल पावर ने दिया प्रेजेंटेशन
जिंदल पावर लिमिटेड ने शुक्रवार को उप मुख्यमंत्री सुदेश महतो के समक्ष बेहतर जल प्रबंधन को लेकर प्रेजेंटेशन दिया. कंपनी गोड्डा में ऊर्जा संयंत्र स्थापित कर रही है. कंपनी के कार्यपालक निदेशक ने उप मुख्यमंत्री को बताया कि दुमका और गोड्डा में जल प्रबंधन के कई उपाय किये जा सकते हैं.

उनका कहना था कि राज्य में जितनी बारिश होती है
, उसका 15 प्रतिशत ही उपयोग हो पाता है. बारिश के पानी की बेहतर उपयोगिता के लिए श्रंखलाबद्ध चेक डैम व तालाब बनाये जाने की आवश्यकता है. बड़े डैमों से बड़े पैमाने पर विस्थापन होता है. इसलिए छोटी योजनाओं से पानी का जलस्तर भी बनाया रखा जा सकता है. इस मौके पर एके बिरूली भी उपस्थित थे.










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महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना के अन्तर्गत

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अलग नम्बर सीरीज के खाते


हलैना | महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना के अन्तर्गत मजदूरी करने से पहले श्रमिक अब यह सुनिश्चित करलें कि जिस संबंधित डाकघर या उपडाकघर में उसने मजदूरी की राशि लेने के लिए नरेगा खाता खुलवा रखा है कहीं वह बचत खाता नम्बर सीरीज में तो नहीं खुला हुआ है। यदि बचत खाता नम्बर सीरीज में नरेगा खाता खुला है तो ऐसे नम्बर सीरीज के नरेगा खातों में अब मजदूरी की राशि जमा नहीं होगी।

भारतीय डाक विभाग ने मनरेगा श्रमिकों को बचत खाता सीरीज से अलग नम्बर सीरीज के नए खाते खोलने का काम प्रारंभ कर दिया है। विभाग ऐसा पूरे प्रदेश में कर रहा है। इसलिए डाकपाल व उपडाकपाल को आदेश दिए गए हैं कि बचत खाता नम्बर सीरीज में खुले नरेगा खातों में पिछले १ जनवरी से मजदूरी की राशि जमा नहीं की जाए ऐसे श्रमिकों को नरेगा की नम्बर सीरीज में नया खाता खोलकर के लेन देन किया जाए। विभाग ने जिला कलेक्टर एवं जिला कार्यक्रम समन्वय नरेगा को हो लिख दिया है कि बचत खाता सीरीज में जितने भी नरेगा खाते खुले हुए हैं उनमें राशि जमा नहीं कराई जाए। गौरतलब बात यह है कि जिन श्रमिको को नरेगा सीरीज वाले नम्बर के खाते खुले हुए हैं उनका दोबारा खाता खुलवाने की जरूरत नहीं हैं।



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संविदा कर्मियों को किया जाए नियमित

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मनरेगा कार्मिक संघ ने मुख्यमंत्री को सौंपा ज्ञापन


‘संविदा कर्मियों को किया जाए नियमित’


हनुमानगढ़& विभिन्न मांगों को लेकर महात्मागांधी नरेगा कार्मिक संघ जिला इकाई ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा है। ज्ञापन के मुताबिक सभी एमजीनरेगा योजना में कार्यरत्त सभी संविदा कर्मियों को पंचायती राज व पंचायत सेवा में समायोजित कर नियमित किया जाए। कार्मिक नियोजन में एनजीओकरण प्रथा समाप्त की जाने की भी मांग की गई है। कार्मिकों का कहना है कि मनरेगा कार्मिकों का वेतन दोगुना कर महंगाई भत्ता दिया जाए, बीस दिन के अवकाश का प्रावधान किया जाए इसके अलावा जिला परिषद, पंचायत समिति एवं ग्राम पंचायतों में अन्य विभागों से प्रतिनियुक्ति पदस्थापित शिक्षकों को उनके मूल विभागों में भेजा जाए।

संघ के अध्यक्ष सुनील भारद्वाज, संरक्षक रणजीत कुमार, उपाध्यक्ष शीशपाल देहडू, श्योपत कड़वासरा, प्रचार प्रभारी सुनील शर्मा आदि ने समस्याओं के त्वरित समाधान की मांग की है।




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Thursday, January 6, 2011

राजस्‍थान में अब नरेगा मजदूरी के तहत मिलेंगे 119 रुपए

Thursday, January 6, 2011
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राजस्‍थान में अब नरेगा मजदूरी के तहत मिलेंगे 119 रुपए

जयपुर. केंद्र सरकार ने नरेगा की मजदूरी को कृषि श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जोड़ते हुए इसमें 17 से 30 प्रतिशत तक बढ़ोतरी की घोषणा की है।

राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सलाह पर की गई इस वृद्धि से राजस्थान में नरेगा मजदूरों को अब 119 रु. की दर से मजदूरी मिलेगी। इससे पहले प्रदेश में श्रमिकों को 100 रु. मजदूरी मिल रही थी। यह 1 जनवरी, 11 से लागू होगी। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर नरेगा की मजदूरी को मूल्य सूचकांक से जोड़ने और देशभर में दरों को बढ़ाने का आग्रह किया था।

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री सी.पी. जोशी ने गुरुवार को नई दिल्ली में इसकी घोषणा की। अन्य राज्यों में वहां के सूचकांक के आधार पर बढ़ोतरी तय होगी। इसके अनुसार सबसे कम 117 रुपए मेघालय में और सबसे अधिक चंडीगढ़ में 174 रुपए होगी। उन्होंने बताया कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जोड़ने पर हर साल इसमें वृद्धि होती रहेगी। इसके लिए 1 अप्रेल, 2009 को मूल्य सूचकांक 100 माना गया है।

इसके आधार पर राजस्थान में दर 119 रुपए होती है। अन्य राज्यों में वहां के सूचकांक के आधार पर बढ़ोतरी तय होगी। इसके अनुसार सबसे कम 117 रुपए मेघालय में और सबसे अधिक चंडीगढ़ में 174 रुपए होगी। वैसे अंडमान में 170 रुपए और निकोबार में 181 रुपए तय की गई है।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को लिखा था पत्र: मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर नरेगा की मजदूरी को मूल्य सूचकांक से जोड़ने और देशभर में दरों को बढ़ाने का आग्रह किया था। प्रधानमंत्री ने गहलोत के इस आग्रह को मानते हुए इसे हरी झंडी दी है। उल्लेखनीय है कि सूचना एवं रोजगार का अधिकार अभियान की ओर से नरेगा की मजदूरी को मूल्य सूचकांक से जोड़ने की मांग को लेकर जयपुर में लंबे समय तक धरना दिया था।


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नरेगा कार्यो का निरीक्षण, श्रमिक अनुपस्थित

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नरेगा कार्यो का निरीक्षण, श्रमिक अनुपस्थित

श्रीगंगानगर। भारतीय मजदूर संघ के राजस्थान व गुजरात प्रदेश प्रभारी डॉ. बी.के.राज के अनुसार देश में महानरेगा योजना भ्रष्टाचार का अaा बन गई है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने देश की विभिन्न नदियों को जोड़ने की योजना बनाई थी। उसे यदि महानरेगा के जरिए पूरा किया जाता है तो यह सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।

यहां संगठन की दो दिवसीय प्रदेश कार्य समिति की बैठक के उद्घाटन सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में उन्होंने कहा कि राहत के नाम पर फिजूल खर्ची कैंसर रूपी बीमारी बन चुकी है। पेंशन आदि से सामाजिक सहायता दी जा सकती है लेकिन नरेगा में खर्च होने वाली राशि में युवा श्रमिकों को पंगु बना रही है। श्रमिक की आजीविका के साथ उसका काम भी राष्ट्रहित में दिखना चाहिए। आजादी के बासठ साल बीतने के बावजूद श्रमिकों को उनके काम की सुरक्षा नहीं मिली है।

देश में भ्रष्टाचार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट तक भ्रष्टाचार पर कड़ी टिप्पणियां कर चुका है लेकिन केन्द्र और राज्य सरकारों ने इसे अभी तक गंभीरता से नहीं लिया है।

प्रदेशाध्यक्ष प्रहलाद सिंह अहवाना ने कहा कि राज्य सरकार ने न्यूनतम मजदूरी 135 रूपए की है, यह महंगाई को देखते हुए काफी कम है। संगठन ने न्यूनतम ढाई सौ रूपए मजदूरी की मांग की थी। उन्होंने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता का मानदेय दस हजार रूपए, आशा सहयोगिनी और साथिनों के लिए पांच हजार रूपए करने की मांग की। प्रदेश महामंत्री राजबिहारी शर्मा ने कहा कि श्रमिक कल्याण और सुरक्षा के लिए मौजूदा कानूनों में संशोधन करने की जरूरत है।

उन्होंने रोडवेज में सुधार के लिए बसों के अवैध संचालन को सख्ती से बंद करवाने का प्रस्ताव रखा। संभागीय अध्यक्ष गौरीशंकर व्यास ने गत बैठक के बिन्दुओं पर विस्तृत जानकारी दी।

गुर्जर आंदोलन जैसा माहौल
डा. राज के अनुसार संगठन श्रमिकों की मांगों के लिए राज्य सरकार से आर-पार की गई लड़ने को तैयार है। राजस्थान पत्रिका से विशेष बातचीत में उनका कहना था यही हाल रहे तो गुर्जर आंदोलन जैसा माहौल बनाने में देर नहीं लगेगी।


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Monday, January 3, 2011

अफसरों के घर मनरेगा का पैसा लगा तो कार्रवाई

Monday, January 3, 2011
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जोधपुर. मनरेगा के पैसों से कलेक्टर के घर में सजावट करने को राज्य सरकार ने गंभीर माना है।

ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग ने सभी कलेक्टरों को हिदायत दी है कि नरेगा के पैसों का दुरुपयोग रोकें। सरकार ऐसे मामलों में दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी। विभाग के प्रमुख शासन सचिव सीएस राजन ने सभी कलेक्टर व नरेगा जिला कार्यक्रम अधिकारी को प्रशासनिक मद में व्यय के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

राजन ने कहा कि नरेगा के प्रशासनिक मद में कुल व्यय का 6 प्रतिशत राशि व्यय करना अनुमत है, मगर इन निर्देशों की पालना नहीं की जा रही है। नरेगा के पैसों से अफसरों के घर के लिए नया फर्नीचर और अन्य सामान खरीदा गया है। इस प्रकार विभाग के आदेशों की पालना नहीं की गई है। राजन ने फिर से निर्देश दिए कि प्रशासनिक मद के निर्देशों की अक्षरश: पालना की जाए। ऐसा नहीं होने पर दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

सजा था जोधपुर कलेक्टर का घर: ‘भास्कर’ ने १ दिसंबर को ‘मनरेगा के पैसे, सजा कलेक्टर का घर’ शीर्षक से खबर प्रकाशित की थी। इसमें खुलासा किया गया था कि जोधपुर कलेक्टर के आवास पर नरेगा के प्रशासनिक मद से 66 हजार रुपए खर्च कर वुडन कारविंग वाले दीवान, कुर्सियां, गद्दे, बैडशीट और इनवर्टर लगाए गए हैं। कैग टीम ने वर्ष 2008-09 व 10 की ऑडिट कर कलेक्टर के आवास पर नरेगा के पैसे खर्च करने पर आपत्ति की थी।

सौ दैनिक भास्‍कर.कॉम


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जिला कलक्टर विकास कार्यों पर प्रस्तुतिकरण देंगे

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नागौर। जिला कलक्टर डॉ. समित शर्मा 29 दिसम्बर को नई दिल्ली स्थित कृषि भवन में दोपहर एक बजे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजनान्तर्गत जिले में हुए विकास कार्यों पर प्रस्तुतिकरण देंगे।

केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने राज्य के नागौर, चूरू, डूंगरपुर, भीलवाड़ा, बांसवाड़ा, बाड़मेर के जिला कलक्टरों का प्रस्तुतिकरण के लिए चयन किया है।

उल्लेखनीय है कि महानरेगा योजना में उत्कृष्ट कार्य करने पर नागौर सहित छह जिलों का केन्द्र सरकार ने चयन किया है। जिला कलक्टर डॉ. शर्मा नागौर जिले में महानरेगा योजना के तहत किए गए विकास कार्यों पर पावर पाइंट पें्रजेन्टेशन के माध्यम से कृषि भवन में प्रस्तुतिकरण देंगे।

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Sunday, January 2, 2011

स्नेहमिलन समारोह में मनरेगा कर्मियों ने दिखाई एकजुटता

Sunday, January 2, 2011
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स्नेहमिलन समारोह में मनरेगा कर्मियों ने दिखाई एकजुटता

कार्मिकों ने की वेतनवृद्धि की मांग

हनुमानगढ़& जंक्शन स्थित यादव धर्मशाला में मनरेगा कार्मिक संघ का नववर्ष स्नेह मिलन समारोह हुआ। मुख्य अतिथि भादरा विधायक जयदीप डूडी व विशिष्ट अतिथि पूर्व जिला प्रमुख राजेंद्र मक्कासर थे। इस मौके पर विधायक जयदीप डूडी ने कहा कि वे अपने स्तर पर मनरेगा कर्मियों को नियमित करवाने का प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा कि कर्मियों की वेतन वृद्धि की मांग को भी मुख्यमंत्री के सामने उठाया जाएगा। पूर्व जिला प्रमुख राजेंद्र मक्कासर ने मनरेगा कर्मियों के कम वेतन पर अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि कर्मचारियों की सुविधा का ध्यान रखना सरकार का कत्र्तव्य है। ऐसा करके सरकार कर्मचारियों पर कोई एहसान नहीं करती है बल्कि अपना फर्ज पूरा करती है। उन्होंने मनरेगा कर्मियों को नियमित करने की मांग का सर्मथन किया। मनरेगा कर्मिक संघ के जिलाध्यक्ष सुनील भारद्वाज ने मनरेगा कर्मचारियों को नियमित करने और वेतन वृद्धि की मांग की। इस दौरान घनश्याम कड़वासरा, राजेंद्र चाहर आदि ने भी अपने विचार रखे।

हनुमानगढ़. स्नेह मिलन समारोह में मंचासीन मनरेगा कार्मिक संघ के प्रतिनिधि।

अकुशल श्रमिक से भी कम वेतन

स्नेह मिलन समारोह के दौरान संबोधित करते हुए कई वक्ताओं ने इस बात का जिक्र किया कि मनरेगा कर्मियों को अकुशल श्रमिक से भी कम वेतन दिया जा रहा है। यहां तक कि कम्प्यूटर ऑपरेटर भी कम वेतन पर अधिक काम कर रहे हैं। मनरेगा कार्यक्रम में हनुमानगढ़ जिले के उल्लेखनीय प्रदर्शन की भी चर्चा हुई और वक्ताओं ने इसके लिए मनरेगा कर्मियों की पीठ थपथपाई।

ठंड भी नहीं रोक पाई कदम

रविवार को भारी ठंड के बावजूद बड़ी संख्या में मनरेगाकर्मी स्नेह मिलन समारोह के लिए एकत्र हुए। कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए नोहर, भादरा व अन्य दूरदराज के क्षेत्र के कर्मचारी भी सही समय पर पहुंचे। समारोह में शिरकत करने में महिलाकर्मी भी पीछे नहीं रही। कार्यक्रम में पहुंचने वालों का स्वागत ढोल की थाप के साथ हुआ।

हनुमानगढ़. कार्यक्रम में उपस्थित मनरेगा कर्मी।

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मुखिए तैयार, बन रहे पंचायत सचिवालय

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मुखिए तैयार, बन रहे पंचायत सचिवालय

रांची मुखिया जी के कार्यालय को अब पंचायत भवन नहीं, बल्कि पंचायत सचिवालय कहा जाएगा। पंचायत में स्थापित सभी सरकारी कार्यालयों के दफ्तर यही होंगे। साथ ही साथ यहां बैंक व डाकघर की शाखाएं भी होंगी। रांची के 93 पंचायतों में पंचायत सचिवालयों का निर्माण पूरा हो चुका है। शेष 210 पंचायतों में से अधिकतर जगहों पर निर्माण कार्य तेज है। दावा हो रहा है कि मार्च तक सभी जगहों पर निर्माण कार्य पूरा कर लिया जाएगा। कई जगहों पर जमीन की अनुपलब्धता व कतिपय विवाद के कारण मामला महीनों तक लटका रहा, पर अब स्थितियां अनुकूल हो गयी हैं।

पंचायत सचिवालयों के निर्माण का काम चार फेज में कराया जा रहा है। पहले फेज में वर्ष 2008 में काम शुरू हुआ। 16.7 लाख की लागत से 32 भवनों का निर्माण होना था। ये सभी भवन बन चुके हैं। इसके बाद वर्ष 2009 में 19.95 लाख की लागत से 68 भवन बनाए जाने थे। इनमें से 61 का काम हो चुका है। तीसरे फेज में 87 और चौथे फेज में 116 पंचायत सचिवालय के निर्माण को मंजूरी मिली। इस पर 21.122 लाख खर्च होना है। तीसरे और चौथे फेज का काम नरेगा के पैटर्न पर हो रहा है। इसमें 10 लाख रुपये नरेगा से खर्च होना है। शेष रुपये पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष से खर्च हो रहा है। स्थल चयन में बीडीओ, सीओ, सांसद प्रतिनिधि, विधायक प्रतिनिधि, ग्राम पंचायत राज पदाधिकारी और सहायक अभियंता ने भाग लिया था। इन भवनों में प्रज्ञा केंद्र, पंचायत सेवक, हल्का कर्मचारी, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, बैंक, डाकघर, नरेगा आदि के कार्यालय होंगे।


भवन निर्माण की स्थिति

संख्या लागत स्थिति
32 16.7 लाख पूर्ण
68 19.95 लाख 61 पूर्ण
203 21.122 लाख काम जारी


नरेगा के पैटर्न पर 203 पंचायत सचिवालय बन रहे हैं। ये सभी मार्च तक कंपलीट कर लिए जाएंगे। चुनाव के कारण निर्माण की गति पर असर पड़ा था। परंतु, अब यह निर्माण कार्य तेज हो गया है।

अंजनी कुमार, जिला योजना पदाधिकारी

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नरेगा के पैसों से चमकेगा जिला प्रमुख का दफ्तर

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नरेगा के पैसों से चमकेगा जिला प्रमुख का दफ्तर!


जयपुर. गांवों में रोजगार देने के लिए लागू किए गए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) का पैसा जयपुर के जिला प्रमुख के दफ्तर और जिला परिषद के भवन पर खर्च हो रहा है।

नरेगा की गाइडलाइंस में नगर निगम सीमा में सिविल वर्क पर पाबंदी के बावजूद अफसरों ने इन भवनों की साज-सज्ज के लिए साढ़े नौ लाख रुपए जारी कर दिए। जिला प्रमुख हजारीलाल नागर के कक्ष में आजकल रिनोवेशन का काम चल रहा है। ऑफिस में फॉल्स सीलिंग, नई टाइल्स लगाई जा रही हैं और पुरानी खिड़कियों के स्थान पर नई खिड़कियां बदली जा रही हैं। वहीं जिला परिषद के सभा भवन में नए लैटबाथ भी बनाए जा रहे हैं।

आखिर यह पैसा जिला परिषद की साधारण सभा में तो स्वीकृत नहीं हुआ, फिर बजट कहां से आया? यह सवाल भास्कर ने जिला परिषद के अधिकारियों से किया तो सामने आया कि रिनोवेशन पर खर्च किया जा रहा बजट नरेगा का है। तत्कालीन जिला कार्यक्रम समन्वयक ने यह राशि 16 जून, 2010 को प्रशासनिक मद से स्वीकृत की थी। हालांकि, गाइडलाइंस में तय है कि प्रशासनिक मद में ऑफिस रिनोवेशन और कोई भी सिविल वर्क नहीं कराया जा सकता।

जिला प्रमुख हजारी लाल नागर से बातचीत

क्या आपके कार्यालय और जिला परिषद भवन के रिनोवेशन पर नरेगा का पैसा इस्तेमाल हो रहा है?
हां, दस लाख रुपए खर्च होंगे, लेकिन यह स्वीकृति हमें तत्कालीन कलेक्टर ने दी थी।

मगर नरेगा के पैसों से तो रिनोवेशन (जीर्णोद्धार) नहीं किया जा सकता?
हम जिला परिषद के सभी विभागों को एक साथ लाने के लिए यह कार्य कर रहे हैं। छोटा—मोटा काम जैसे रंग रोगन इत्यादि ही किया जा रहा है।


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